एक शख्स - 1 प्रवीण बसोतिया द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एक शख्स - 1

शादी की तैयारी इस कदर जोरों शोरो पर थी, हर कोई ख़रीददारी मैं लगा हुआ था। हर कोई बस ये ही सोच रहा था था, कि मुझे क्या पहनना चाहिए शादी वाले दिन और ,बस ये सब बातें केवल एक इंसान नहीं सोच रहा था । वो थे मेरे पिता जी, उन्होनें मेरी शादी के लिए न जाने किस किस से उधार लिया था। मेरी पढ़ाई अभी खत्म भी नहीं हुई थी। कि मेरी बुआ के कहने पर मेरा रिश्ता कर दिया गया। बुआ जी ने माँ के कानों को बहुत चतुराई के साथ भरा था। जवान बेटी है, और जवानी में मुंह काला होने से पहले हाथ पीले हो जाये तो अच्छा होता है। भाभी,

और न जाने कौन कौन जली कटी बातों ने माँ के ह्रदय को मक्की की छल्ली की तरह भून कर रख दिया। माँ कुछ बोल नहीं पाई, और सीधा पिता जी से विचार विमर्श करने चली पिता जी को तो बुआ जी पहले ही अपनी तरफ कर चुकी थी।

लड़के वालों ने पैसों की मांग तो नहीं कि लेकिन उन्होंने कार की मांग जरूर की लड़का सरकारी नॉकरी वाला था। और घरवालों ने बस मुझे बार बार एक ही बात कहकर समझाया कि लड़के की सरकारी नॉकरी है। तुम्हें ज़िंदगी में कभी कोई तकलीफ नहीं होगी। लेकिन मैं जान चुकी थी कि हर तकलीफ पैसे से ही नहीं जुड़ी होती, पर बोलने का तो कोई फायदा ही नहीं था। बस मैं चुप चाप हो गई। क्योंकि मेरे पिता जी ने मुझे बस इतना कहा ज़िंदगी भर तेरी सारी ख्वाहिश पूरी की है। बस बेटा मेरी यह एक बात मान लो। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ लेता हूँ। फिर इतनी बेशर्म तो मैं भी नहीं थी। अपने पिता जी की बातों को न समझू। बस किस्मत में जो होगा देखा जाएगा। ये सोच कर शादी के लिए हां कर दी। और सभी रिश्तेदारों के यहां शादी का कार्ड भिजवा दिया गया। मैं अब उस गुड़िया जैसी हो गई थी। जिसके साथ मैं बचपन में खेला करती थी। जो मेरे द्वारा सजाए जाने के बाद रोज शादी करती थी। बिना कुछ बोले, बस आज मुझे उस गुड़िया का दर्द समझ आ रहा था। वह एक खिलौना था। लेकिन मुझे ऐसा लगता है। जैसे उसके अंदर भी भावना बहती थी। जो मुझे अब महससू हो रही थी। मेरा नाम आरवी है और मैं राजस्थान के जिले जयपुर में रहती हूँ। रंग से सांवली हूँ। लेकिन आँखों की तारीफ बहुत लोगों ने की है। हाइट 5.7इंच है। स्लीम फिगर है। लेकिन ये कहानी मेरे शरीर के बारे में नहीं है। यह वृतांत शुरू हुआ। उस वक्त जब शादी को 15 दिन बचे थे। और मैं अपनी माँ के साथ शादी की शॉपिंग करने के लिए एक मॉल गई। और वहाँ मेरी मुलाकात हुई। दामिनी से जो उस मॉल में ही काम किया करती थी। उसने मुझसे मेरा फ़ोन नंबर मांगा, और कहा कि लहंगे के डिज़ाइन मैं आपको व्हाट्स अप पर भेज दूँगी। मेने उसे कहा कि तुम अपना नंबर लिख कर दो मैं तुम्हें संदेश भेजूंगी। और उसने लिख कर दिया। उसने 6 को ऐसे लिखा था। मैं कन्फ्यूज़ हो चुकी थी ये 6 है या फिर 0 , और मैंने 0 समझ कर नंबर सेव कर लिया। और संदेश भेज दिया। की दामिनी लहँगे की फ़ोटो भेजो। उस तरफ से संदेश आया कि पहले आप अपनी पूरी फ़ोटो भेजो। उसके बाद मैं उसी हिसाब से लहँगे के डिज़ाइन भेजेंगे। मैने सोचा कि उसने मुझे देखा तो है ही लेकिन दुबारा फ़ोटो क्यों, लेकिन मैंने ज्यादा नहीं सोचा और फोटो भेज दी। और 5 मिनट बाद उधर से काफी सारे लहँगे की फ़ोटो आई। जो बहुत महँगे थे।

मैंने कहा कि दामिनी मैंने तुम्हें अपना बजट बताया था। ना उस बजट में ही भेजो। फिर उधर से संदेश आया। कि ये उस बजट का ही है।आप ले लो। मैंने सबसे अच्छे वाला पसंद किया। और उसका रेट पूछा था। तो उधर से रिप्लाई आया। 5000 का मिल जाएगा। मैंने कहा मैं तो समझ रही थी। इसकी कीमत 50000 होगी। तो उधर से रिप्लाई आया। जी 50000 ही थी। लेकिन इसपर 95℅ऑफ चल रहा है। लेकिन सिर्फ 2 दिन के लिए। मैंने कहा कि मुझे आप आज ही भेज दो। तो उधर से रिप्लाई आया। हमारा आदमी लहँगा लेकर आ जायेगा। आप अपने घर का पता भेज दीजिये। मैंने पता भेज दिया। और अगले दिन उनका आदमी लहँगा लेकर आ गया। और फिर शादी वाला दिन आ गया। मैं बहुत उदास थी। ये सब सोचकर कि वहाँ सब कैसा माहौल होगा। तरह तरह की बातें मुझे परेशान कर रही थी। लेकिन मुझे कोई समझ नहीं रहा था। शादी हो गई। मेरे पति का नाम किशोर था। और वह हमारी सुहाग वाली रात के दिन भी शराब पीकर कमरे में आये। और आते ही मुझसे पूछने लगे। पहले तुम्हारा कोई लवर था। मैंने कहा नहीं। तो वो बोला वो तो थोड़ी देर में पता चल ही जायेगा। मैं चुप चाप बैठी रही। फिर उनका फोन बजा । वो बोला नहीं यार तुम ऐसे न समझो। तुम टेंशन लेती हो। मैं समझ चुकी थी। कि उनकी ज़िंदगी में कोई और भी है। लेकिन मुझे ये भी लगा। कि शायद मैं गलत हो सकती हूँ। लेकिन अब मेरा मन कुछ अजीब था। मैंने कहा। कि आज ये सब नहीं करते। मुझे 1 या 2 दिन का वक़्त दीजिये। मैं बहुत डरी हुई हूँ। तो उसने कहा अपना नाटक शुरू कर दिया। तूने तेरा बाप तो बोल रहा था हमारी लड़की बहुत सीधी है। क्या नाम है तेरे यार का, मैं डरते हुए बोली, की मेरा ऐसा किसी के साथ कभी कोई रिश्ता नही था। आप प्लीज मेरे पिता जी को कुछ मत कहिए। आप कर लीजिए जो करना चाहते हैं। फिर उसने पागलों की तरह मेरे बदन को नोचना शुरू कर दिया। जब उसे पता चल गया कि मैं सच कह रही थी। तो उसने मेरी गालों पर चुम लिया। लेकिन मुझे अच्छा नी लगा। मुझे घिन आने लगी थी। ऐसा लग रहा था। जैसे किशोर ने मेरे साथ बलात्कार किया है। किंतु समाजिक रिवाज के अनुसार यह उचित था। और उसका हक था। लेकिन ऐसा लग था। ये हक उसके लिए नहीं है। किंतु अपने पिता जी की आदर्श बेटी होने के नाते मुझे सब सहना पड़ा। और 2 दिन बाद मैं घर आई। मेरी सहलियो से मैंने ये बात साजा की तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे साथ पहली बार था। तो तुम्हें ऐसा लग रहा है। कुछ दिन बाद तुम्हें अपने पति से प्यार हो जाएगा। फिर खुशी भरी जिंदगी हो जाएगी तुम्हारी , किशोर अब मुझसे बहुत अच्छे से बात करने लगा। लेकिन उसे फ़ोन आते थे। तो वो दूर जाकर बात करने लगा। मैं सोचने लगी। अगर मैं उस दिन पवित्र न होती तो शायद किशोर मुझे ये इज्जत कभी नहीं देता, भले ही मेरा दिल कितना अच्छा है। लेकिन किशोर को इसके बारे में कुछ नहीं पता। फिर मेरी ज़िंदगी में ऐसे दिन शुरू हुए। जिसमे किशोर मेरे शरीर को इस्तेमाल करके खुश हो जाता था। लेकिन उसे मेरी खुशियों की तनिक भी फिक्र न थी। मुझे ऐसा लग रहा था। कि ये जो रोज होता है। ये गलत हो रहा है।

जिसे भी अपने दिल की बात बताती तो वो येही कहती कि दिल मिल जायेगा। तो सब ठीक होगा। लेकिन किशोर में मुझे ऐसे कोई बात नहीं दिखी। जिससे मुझे उससे प्यार हो जाये। जैसे फिल्मों और किताबों में, प्यार बयान किया जाता है। ऐसा कुछ भी।नहीं हो रहा था।